शातिर दिमाग आफताब के सामने बेबस कानून
श्रद्धा मर्डर केस जब से कानून के दायरे मे आया है तब से पूरे देश मे चर्चा का विषय बना हुआ है, बङे हो या छोटे अमीर हो या गरीब। सब इसी की बात कर रहे है, दिल्ली कोर्ट के वकीलो ने सामुहिक रूप से आफताब का केस अपने हाथ मे न लेने का फैसला किया, उन्होने तो आफताब को फासी दिलवाने के लिये नारेबाजी भी की, ऐसे मे इस केस का कानूनी पहलु जानना बहुत ही दिलचस्प होगा, आईये एक नजर डालते है -
कानूनी पक्ष
देखने मे open and shut लगने वाला ये केस वास्तविकता मे इतना सीधा नही है,
1 - इस केस मे सबसे बङा सबुत है खुद मुल्जिम का इकबालिया जुल्म, पुरा केस आफताब के बयान के इर्द गिर्द घुम रहा है। अगर उस बयान के अलावा देखा जाये, तो अभी तक पुलिस के पास श्रद्धा के मृत होने तक का कोई पुख्ता प्रमाण नही है।
2- पुलिस को वो हथियार भी बरामद नही हुआ है, जिससे श्रद्धा के टुकड किये गये थे
3 - आज digital era मे मोबाईल सबसे बङा सबुत होता है, पर श्रद्धा हत्याकांड मे उसका भी अभी तक कुछ अता पता नही है।
4 - फॉरेंसिक टीम को छतरपुर के उस फ्लैट मे एक जगह को छोङ कर कही भी खुन के धब्बे तक नही मिले,
ऐसे मे ये कह पाना कि अदालत आफताब दोषी मान ही लेगी, बहुत मुश्किल है। अगर परिस्थिती जनक साक्ष्य को छोङ दे तो अभी तक ऐसा कोई ठोस प्रमाण नही है, जो श्रद्धा को मृत घोषित कर सके। ये बहुत ही अफसोस जनक बात है कि भारत का कानून कुछ दिमाग वालो के हाथ का खिलौना बन चुका है, अब जरूरत है इसमे बदलाव करने की।
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