लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल

 34 का युवा वकील अपने मुवक्किल को बचाने के लिए गुजरात की एक कोर्ट  में मुक़दमे की पैरवी कर रहा था कोर्ट खचाखच भरा हुआ था। उसी दौरान उस वकील के नाम एक टेलीग्राम आया। वकील ने बहुत ध्यान से उस टेलीग्राम को पढ़ा और वापस अपनी जेब में डाल लिया। और दुबारा से अपने मुकदमे की पैरवी में लग गया मामले की सुनवाई ख़त्म व केस जीतने के बाद न्यायाधीश ने उत्सुकता वश पुछा की उस तार में क्या लिखा था तो युवा वकील ने जवाब दिया की उसमे मेरी पत्नी की मृत्यु का समाचार था। न्यायधीश ने हैरान होकर सरदार से पुछा की आपने कोर्ट को बताइये क्यों नहीं तो युवा वकील ने जवाब दिया की में अपना फर्ज निभा रहा था। ऐसा था व्यक्तित्व लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का.

lauh purush
सरदार वल्लभ भाई पटेल 


लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का करिश्मायी व्यक्तित्व

भारत की आज़ादी से लेकर नवनिर्माण तक अनेक महा पुरुषो ने अपना योगदान दिया किन्तु अखंड भारत के निर्माण में लौह पुरुष सरदारर पटेल का योगदान अविश्मरीय है , भारत के एकीकरण में इनके अतुल्य योगदान के लिए इन्हे भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है. भारत की स्वतंत्रतात में अपने योगदान के बाद सरदार पटेल ने स्वतंत्रता के बाद छिन्न भिन्न हुए भारत का भी एकीकरण किया जिसकी यादगार के तौर पर उनका जन्म राष्ट्रीय 'एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

लौह पुरुष सरदार पटेल का प्रारम्भिक जीवन

गुजरत के नाडियाड जिले के खेड़ा तहसील में 31 अक्टूबर 1875 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में 6 भाई बहेनो के बीच इनका जन्म हुआ अपने भाई बहेनो में ये ४ नंबर के थे. इनका बचपन अत्यंत अभावो में बीता। किन्तु बाल्य काल से ही ये तेजस्वी व्यक्तित्व के स्वामी थे खेड़ा से प्रारम्भिक शिक्षा के बाद ये आगे की शिक्षा के लिए शहर गए. 24 वर्ष की उम्र में इन्होने ब्लीडर की परीक्ष आपस की और गोधरा में प्रैक्टिस करने लगे। ये फौजदारी मामलो के कामयाब वकील थे.

बारदौली सत्याग्रह व सरदार की उपाधि

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1928 में गुजरत का बारडोली जिला अकाल व अवर्षा से ग्रसित था जिसके बावजूद ब्रिटिश हुकूमत ने लगान २२ प्रतिशत कर दिया जिसका विरोध करने के लिए यहाँ के मेहता बंधू ने महात्मा गाँधी से सहायता मांगी और महात्मा गाँधी के कहने पर लौह पुरुष यहाँ के किसानो की सहायता करने बारडोली गए। किसानो कने शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन किया व विजय हासिल की इस आंदोलन के बाद ही लौह पुरुष की तिलिस्मी नेतृत्व क्षमता का देश वासियो को पता चला तथा इस आंदोलन बारडोली की महिलाओ ने उन्हें सरदार की उपाधि दी जो आज भी उनके सम्बोधन का अभिन्न अंग है.

लौह पुरुष व देशी रियासतों का एकीकरण



स्वतंत्रता के बाद देश के सामने अनेक चुनौतियां थी जीने से एक थी इकहरे हुए भारत को एक करके शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनाना। स्वतंत्रता के अड़ अंग्रेओ ने अपने अधिपत्य वाला भारत तो अंतरिम सरकार को सौप दिया किन्तु रियासतों को स्वतंत्रत दे दी की वो अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान में से किसी एक के साथ मिल जाए या फिर स्वतंत्र रहे. जिससे कई रियासतों में स्वतनत्र होकर अपना देश बनाने की इच्छा होने लगी. कल्पना कीजिये उस भारत की इसमें 562 रियासते या उनमे से आधी भी स्वतंत्र स्थापित कर लेती क्या स्वरुप होता उस भारत का. किन्तु सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ व कूटनीति का इस्तेमाल करते हुए इन रियासतों को भारत में मिला लिया। किन्तु जूनागढ़ हैदराबाद व कश्मीर इसके बाद भी हैरत में मिलने को तैयार नहीं थे. जहा जूनागढ़ व हैदराबाद पाकिस्तान के साथ जाना चाहता था वही कश्मीर एक स्वतंत्र देश बने रहना चाहता था जिसका खामयाजा आज तक कश्मीरी नागरिक भुगत रहा है। जूनागढ़ को जनमत संग्रह के आधार पर वही हैदराबाद को पुलिसिया कारवाही से भारत में मिला लिया गया।


लौह पुरुष को भारत सम्मान 



वैसे तो लौह पुरुष का व्यक्तित्व इतना विशाल था की भारत रत्न जैसा पुरुस्कार उनके सामने छोटा पड़ आता है  क्योंकि स्वतंत्र  भारत का अस्तित्व उनके प्रयासों का नतीजा है फिर भी वर्ष 1991 में इन्हे संयुक्त रूप से राजीव गाँधी और मोरार जी देसाई के साथ दिया गया. 


लौह पुरुष व एकता स्मारक


statue of unity
एकता स्मारक 


पूर्व की सरकारों की उपेक्षा के बाद जब केंद्र में प्रधान मंत्री मोदी की सरकार आयी तो उन्होंने लौह पुरुष को वो समान दिया जिसके वो अधिकारी थे. उन्होंने सरदार सरोवर से कुछ दूरी पर गुजरात के भरुच जिले में सरदार पटेल की 183 फ़ीट ऊँची प्रतिमा का शिलान्यास किया तथा भारत के प्रथम आंतरिक मंत्री व उप प्रधान मंत्री की याद में उस जगह को एकता स्थल का नाम दिया।

 


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