जगन्नाथ मंदिर - jagannath mandir
जगन्नाथ मन्दिर पुरी
ओडिसा पुरी का श्री जगन्नाथ मन्दिर एक हिन्दू मन्दिर है, जो वैष्णव संप्रदाय को समर्पित है। यह ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के नाथ होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मन्दिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह विष्णु भगवान् का मन्दिर है, जो उनके अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। यहाँ हर वर्ष रथ यात्रा आयोजित की जाती है इसमें भगवान् जगन्नाथ बलराम और सुभद्रा अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।
जगन्नाथ मंदिर में हवा से विपरित लहराती है ध्वजा
आमतौर पर दिन के समय हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती है और शाम को धरती से समुद्र की तरफ ये प्रक्रिया भौगोलिक है सभी समुद्र तटों पर होती है पर जगन्नाथ में यह प्रक्रिया उल्टी है. मंदिर का झंडा हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराता है. हवा का रुख जिस दिशा में होता है झंडा उसकी विपरीत दिशा में लहराता है. तथा जगन्नाथ मंदिर समुद्र से १ किलोमीटर की दूरी पर है फिर भी मंदिर के अंदर जाते ही समुद्र की आवाज़ आना बंद हो जाती है
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jagannath temple |
जगन्नाथ मंदिर की रसोई का रहस्य
कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है. रसोई का चमत्कार ये है कि यहां भगवान का प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक के ऊपर एक रखे जाते हैं. ये बर्तन मिट्टी के होते हैं जिसमें प्रसाद चूल्हे पर ही पकाया जाता है. आश्चर्यजनक तौर पर इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है. चाहे लाखों भक्त आ जाएं लेकिन प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता और न व्यर्थ जाता है. मंदिर के बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है.
नहीं दिखती है जगन्नाथ मंदिर की परछाई
जगन्नाथ मंदिर करीब चार लाख वर्ग फीट एरिया में है. इसकी ऊंचाई 214 फीट है. किसी भी वस्तु या इंसान, पशु पक्षियों की परछाई बनना तो विज्ञान का नियम है. लेकिन जगत के पालनहार भगवान जगन्नाथ के मंदिर का ऊपरी हिस्सा विज्ञान के इस नियम को चुनौती देता है. यहां मंदिर के शिखर की छाया हमेशा अदृश्य ही रहती है.
जगन्नाथ मंदिर में हर 12 साल में बदली जाती है मूर्तियां
यहां हर 12 साल में जगन्नाथजी, बलदेव और देवी सुभद्रा तीनों की मूर्तिया को बदल दिया जाता है. नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. मूर्ति बदलने की इस प्रक्रिया से जुड़ा भी एक रोचक तथ्य यह है. मंदिर के आसपास पूरी तरह अंधेरा कर दिया जाता है. शहर की बिजली काट दी जाती है. मंदिर के बाहर CRPF की सुरक्षा तैनात कर दी जाती है. सिर्फ मूर्ती बदलने वाले पुजारी को मंदिर के अंदर जाने की इजाजत होती है.
भगवान जगन्नाथ के हाथ क्यों नहीं हैं?
इतने समय से सुनी जाने वाली कहानियों के अनुसार कवि तुलसीदास एक बार भगवान राम की खोज में पुरी गए थे, जिसे वे रघुनाथ कहते थे। भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के बाद, वह बेहद निराश हुए। वह इतना दुखी हुआ कि वहां से चला गया। क्योंकि जगन्नाथ के कान, हाथ और पैर नहीं थे। दरअसल जिस व्यक्ति ने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाई थी, उसने कहा था कि जब तक मैं मूर्ति बना रहा रहा हूं, तब तक कोई मुझे इस कमरे से न बुलाए, लेकिन जिस राजा ने उन्हें मूर्ति को बनाने का कार्य दिया था, वह सोच रहे थे कि इतने वर्ष होने के बाद भी अभी तक मूर्ति क्यों नहीं बनी, क्या कारण है। जब वह परेशान हुआ तो उसने कमरे का दरवाजा खोल दिया और फिर वह मूर्तिकार ने मूर्ति को अधूरा ही छोड़ दिया।
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jagannath rath yatra |
जगन्नाथ मंदिर के शिखर नहीं नजर आते पक्षी
आमतौर पर मंदिर, मस्जिद या बड़ी इमारतों पर पक्षियों को बैठे देखा होगा. लेकिन पुरी के मंदिर के ऊपर से न ही कभी कोई प्लेन उड़ता है और न ही कोई पक्षी मंदिर के शिखर पर बैठता है. भारत के किसी दूसरे मंदिर में भी ऐसा नहीं देखा गया है.
क्या होता है जगन्नाथ की पुरानी मूर्ति? पुरानी मूर्तियों को मंदिर परिसर के कोइलीबैकुंठा (देवताओं के कब्रिस्तान के रूप में भी जाना जाता है) क्षेत्र में दफनाया गया था। हिंदू घरों में मृत्यु के बाद की रस्मों की तरह, कल रात के कार्यक्रम में शामिल होने वाले सेवकों को 10 दिनों के बाद मुंडन कराया जाएगा और पुरानी मूर्तियों की मृत्यु का शोक मनाया जाएगा।
जगन्नाथ मंदिर की समस्या
१ - जगन्नाथ मंदिर में हिन्दुओ के अलावा अन्य धर्म के लोगो का जाना मना है ,,
२ - मंदिर की ध्वजा पर एक ही परिवार का एकाधिकार है, मंदिर की ध्वजा उतरने के बाद बाजार में बिकने के लिए उपलब्ध हो जाती है
पूजा एक धार्मिक विषय है, किसी व्यक्ति की आस्था का व्यापार किसी भी कीमत पर सही नही है। धार्मिक स्थलो पर इस तरह की समस्या अक्सर देखने को मिलती है, ये हमारी जिम्मेदारी है कि आस्था के व्यापार को बढने न दे।
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