kAHAANI
दोपहर का समय था। गर्मियों की हल्की धूप आँगन में बिखरी हुई थी। तभी बाबूजी ने मेरी ओर देखकर कहा,
"बहू, आज रात राघव घर नहीं आएगा और मैं भी अपने किसी मित्र के यहाँ जा रहा हूँ, लौटते-लौटते देर हो सकती है। मेरी चिंता मत करना। और हाँ, मेरे हिस्से का खाना मत बनाना। घर में किसी अनजान को मत घुसने देना।"
इतना कहकर वे तेज़ क़दमों से घर से बाहर निकल गए।
मैं थोड़ी उलझन में थी। कुछ तो अजीब लग रहा था… इसलिए मैंने तुरंत राघव को फोन किया, जो इन दिनों अपने मामा के यहाँ किसी काम से गया था।
"राघव, बाबूजी कह रहे थे कि तुम आज घर नहीं आओगे?" मैंने पूछा।
"हाँ यार, आज यहीं रुकना पड़ेगा। मामा का थोड़ा और काम निकल आया है। उन्होंने मुझसे रात रुकने को कहा है।"
"पर मैंने तो उन्हें बताया नहीं कि मैं घर में अकेली हूं।"
"अकेली क्यों? बाबूजी तो हैं ना घर में?"
"नहीं, वो भी किसी मित्र के यहाँ जा रहे हैं और देर रात लौटेंगे।"
फोन पर कुछ सेकंड की खामोशी छा गई।
"ओह यार, अब तो मामा से हाँ कर दी है। मना करूँगा तो बुरा मान जाएंगे।"
"तो क्या मैं आज रात घर में अकेली रहूं?" मेरी आवाज़ में घबराहट थी।
"अरे एक काम करो — पड़ोस में चिंकी दीदी रहती है ना, उन्हें बुला लो। वो तुम्हारे साथ सो जाएंगी।"
मुझे सुझाव ठीक लगा। चिंकी मेरी ननद है और बहुत प्यारी है।
मैं तुरंत चिंकी के घर गई। सारी बात बताई और पूछा,
"दीदी, आज रात मेरे साथ घर पर सो जाओगी?"
चिंकी मुस्कराई और बोली, "भाभी, आपके उस मखमली बेड पर सोने का मौका कोई क्यों छोड़े? ज़रूर आऊँगी।"
थोड़ी राहत मिली। मैंने राघव को फोन करके बता दिया कि अब चिंता की कोई बात नहीं है।
शाम के 4 बज रहे थे। मैं आँगन में कुर्सी पर बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रही थी, तभी मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कॉल आया।
"हेलो..."
"क्या आप घर पर अकेली हैं?" एक अजीब-सी गहरी आवाज़ आई।
मैं चौंकी, "क...कौन बोल रहे हैं?"
"जो तुमसे मिलना चाहता है। आज रात।"
मैंने तुरंत कॉल काट दिया। दिल तेज़ धड़कने लगा।
मैंने तुरंत चिंकी को कॉल किया।
"दीदी, ज़रा जल्दी आ जाना। कुछ अजीब-सा लग रहा है।"
"भाभी, चिंता मत करो। मैं 7 बजे तक आ जाऊंगी।"
मैंने दरवाजे लॉक किए, खिड़कियाँ बंद कीं। मन में डर समाने लगा था। कोई साया जैसे घर में आ चुका हो।
शाम ढलते-ढलते अंधेरा फैल गया। घर में हर कोने से सन्नाटा झाँक रहा था।
रात के 8 बज गए। चिंकी नहीं आई। मैंने उसे कई बार कॉल किया, लेकिन फोन बंद था।
राघव को कॉल किया, "चिंकी नहीं आई अभी तक। और उसका फोन भी बंद है।"
"क्या? अरे, ऐसा कैसे हो सकता है?"
"मुझे बहुत डर लग रहा है राघव।"
"ठीक है, मैं निकल रहा हूँ। 1 घंटे में पहुंचता हूँ।"
रात के 9:15 बजे होंगे। घर बिल्कुल शांत था। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।
टुक… टुक… टुक…
मेरी रूह काँप उठी। कौन हो सकता है?
"क-कौन?" मैंने काँपती आवाज़ में पूछा।
"मैं... चिंकी।"
थोड़ा सुकून मिला। दरवाज़ा खोला — पर सामने कोई नहीं था। केवल एक कागज़ का टुकड़ा रखा था जिसमें लिखा था:
"कभी-कभी जो दिखता है वो होता नहीं।।"
मैंने दरवाज़ा बंद किया और तुरंत राघव को कॉल किया।
"राघव, कोई मज़ाक कर रहा है हमारे साथ।"
"तुम बिलकुल भी दरवाज़ा मत खोलना। मैं बस पहुँच ही रहा हूँ।"
10:10 PM — घर की लाइट एक पल को झपकी, फिर जल गई।
अचानक, घर के अंदर किसी के चलने की आवाज़ आई… जैसे कोई धीमे-धीमे मेरे कमरे की ओर बढ़ रहा हो।
मैंने कमरे का दरवाज़ा बंद किया, कुर्सी से अटका दिया और चादर ओढ़ कर बिस्तर पर लेट गई, काँपते हुए भगवान का नाम लेने लगी।
"खटाक" — कमरे का दरवाज़ा खुल गया।
मेरी साँसे थम सी गईं।
कोई अंदर आया… लेकिन जब मैंने आँखें खोलीं — सामने राघव था।
"तुम!!!" मैं चीखी।
"हां, मैं। मैं चिंकी के घर गया था — वो बीमार है, इसलिए नहीं आ सकी। उसके पापा भी घर पर नहीं थे। मुझे शक हुआ, तो मैं तुरंत आ गया।"
मैंने उसे वो कागज़ का टुकड़ा दिखाया।
राघव ने वो पढ़ा और बोला,
"ये तो बाबूजी की हैंडराइटिंग है।"
अगले दिन सुबह बाबूजी लौटे। राघव ने उन्हें वो कागज़ दिखाया।
बाबूजी शांत खड़े रहे, फिर बोले,
"बहू को एक सबक सिखाना चाहता था। घर में अकेले रहने का साहस, समझदारी और सूझबूझ ज़रूरी होती है। ये दुनिया मासूमों के लिए नहीं बनी।"
हम दोनों स्तब्ध थे।
राघव ने कुछ कहना चाहा, लेकिन मैंने उसे रोका।
"नहीं, बाबूजी ठीक कह रहे हैं। मैंने कल जो डर महसूस किया, उसने मुझे और मजबूत बना दिया। अब मैं सिर्फ बहू नहीं, एक योद्धा भी हूं।"
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