उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास

आज के इस पोस्ट में हम उज्जैन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास (Mahakaleshwar Jyotirlinga History hindi) व इससे जुड़ी कहानियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले हैं।


कहा जाता है कि जो महाकाल भक्त है उसका काल कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उज्जैनी के श्री महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग भारत में 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की गणना तीसरे स्थान पर आती है किंतु अगर प्रभाव की दृष्टि से देखा जाए तो इसका स्थान प्रथम पर है। ऐसा माना जाता है कि शिव के अनेक रूप हैं। भगवान शिव की आराधना करने से आपके मन की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। भगवान शिव पूरी पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों पर अनेक ज्योतिर्लिंगों के रूप में विराजमान है।


मध्यप्रदेश के उज्जैन में पुण्य सलिला शिप्रा नदी के तट के निकट भगवान शिव महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है। उज्जैन एक बहुत ही प्राचीतम शहर है और यह राजा विक्रमादित्य के समय में राजधानी हुआ करती थी। उज्जैन को अलग-अलग नामों उज्जैयिनी,  अवंतिका नामों से भी जाना जाता रहा है। पुराणों में इसे सात मोक्षदायिनी नगरों हरिद्वार, वाराणसी, मथुरा, द्वारका, अयोध्या और कांचीपुरम में से एक माना जाता है

उज्जैन की शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ कुम्भ मेला हर बारह वर्ष के उपरांत मनाया जाता है इस दिन यहां एक साथ 10 प्रकार के दुर्लभ योग बने होते हैं जिसमे आपको वैशाख माह, मेष राशि पर सूर्य, सिंह पर बृहस्पति, स्वाति नक्षत्र, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा आदि सभी चीजे एक साथ देखने को मिल जाएंगी।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अपना एक अलग ही महत्व है। माना जाता है कि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पृथ्वी स्थापित एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग है। प्राचीन युग में पूरी दुनियां का एक मानक समय माना जाता था जोकि यही से निर्धारित होता था। यह ज्योतिर्लिंग जहां स्थापित है इसके शिखर से कर्क रेखा होकर गुजरती है। इसे पृथ्वी की नाभि स्थल की मान्यता मिली हुई है।

महाकाल की महिमा का वर्णन इस श्लोक से दर्शाया गया है-

Mahakaleshwar Jyotirlinga-mahakal-shlok-hindi

इस श्लोक यह पता चलता है की आकाश में तारक लिंग प्रसिद्ध है , और पाताल की बात करे तो  हाटकेश्वर लिंग प्रसिद्ध है और अगर पृथ्वी पर देखा जाए तो महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग  ही एक मान्य ज्योतिर्लिंग है।

आइये जानें- भगवान शिव के 190 रूपों और 108 स्तंभों से सजेगा-

उज्जैन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कहानी (Mahakal Temple history, story hindi)

महाकाल के इस मंदिर का निर्माण छठवीं शताब्दी में किया गया था। अगर इतिहास को पढ़ा जाए तो पता चलता है कि उज्जैन में 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन हुआ करता था। इनके शासनकाल में लगभग 4500 वर्षों की हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपरा व मान्यताओं को पूरी तरह से खंडित व नष्ट करने का भरसक प्रयास किया। मराठा राजाओं ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण करके 22 नवंबर 1728 मे अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही।

मराठों के शासनकाल में उज्जैन में दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटी जिसमें पहला, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पुनः प्रतिष्ठित किया गया तथा यहां पर शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ पर्व कुंभ मेला स्नान की पूरी व्यवस्था की हुई। उज्जैन के लिए लोगो के लिए मंदिर एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि थी और फिर बाद में राजा भोज ने महाकालेश्वर मंदिर की पुरानी प्रतिष्ठा को वापस स्थापित किया बल्कि इसका भव्य निर्माण कर

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कहानी

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर एक बहुत ही अनोखी कहानी जुड़ी हुई है। अवंतिका नाम से एक रमणीय नगरी थीं, जिसे आज हम उज्जैन नगरी के नाम से जानते हैं। जो भगवान शिव को बहुत प्रिय है। शिव पुराण के कोटि रुद्रसहिंता में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है।

Mahakaal

इसी नगरी में एक बहुत ज्ञानी व शिवभक्त ब्राम्हण रहता था, इनका नाम वेदप्रिय था। उनके चार आज्ञाकारी पुत्र थे। यह भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। वह हर रोज पार्थिव शिवलिंग बनाकर विधिपूर्वक पूजा किया करते थे।

रत्नमाल पर्वत पर एक दूषण नाम का राक्षस रहता था जिसको ब्रम्हा जी से वरदान प्राप्त था। वह वरदान के अहंकार में वह धार्मिक व्यत्तिफ़यों को परेशान करता था। उसने उज्जैन के ब्राम्हण पर आक्रमण करने का विचार बना लिया। दूषण अवंती के ब्राम्हण को परेशान करना शुरू कर दिया था।

वह ब्राम्हण को कर्मकांड करने से मना करता था। वह धर्मकर्म के कार्य को करने से रोकता था। सारे ब्राम्हण उससे परेशान होकर शिव भगवान से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे।

ब्राम्हणाें के विनय पर भगवान शिव ब्राम्हणो के रक्षा के लिए साक्षात महाकाल के रूप मे प्रकट हुये। शिव भगवान ने अपने शक्ति से दूषण को भस्म कर दीया। भक्तों ने भगवान शिव से वहीं स्थापित होने की प्रार्थना की तो भगवान शिव वहा पर ज्योंर्तिलिंग के रुप में विराजमान हों गए। इसी वजह से इस जगह का नाम महाकालेश्वर पड़ गया। जिसे आप महाकालेश्वर ज्योतिलिंग के नाम से जानते है।


महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े रोचक व महत्वपूर्ण तथ्य (Interesting Facts of Mahakaleshwar Jyotirlinga )

1. महाकालेश्वर मंदिर के रोचक तथ्यों में से एक तत्व भस्म आरती भी है। भस्म आरती की कहानी शिवलिंग की स्थापना से ही देखी जाती है। राजा चंद्रसेन शिव बहुत बड़े उपासक माने जाते थे।

2. प्राचीन समय में शमशान की भस्म से ही श्रृंगार किया जाता था लेकिन अब कपिला गाय के गोबर, शमी, पीपल के पत्ते, बड़, पलाश, बेर की लकड़ी, अमलतास आदि को जलाकर भस्म तैयार की जाती है। जिसको शास्त्रें में भस्म के समान ही महत्व दिया गया है। रोज सुबह भोर से पहले सुबह 4 बजे आरती की जाती है और विधिवत तरीके से मंत्रे के उच्चारण द्वारा भस्म चढ़ाई जाती है।

3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से एक बहुत ही रहस्मयी और रोचक तथ्य यह है कि, ऐसा माना जाता है की इस मंदिर के पास व उज्जैन नगरी में कोई भी राजा या मंत्री रात नहीं गुजार सकता है और यदि कोई ऐसा करता है तो इसे इसकी भारी कीमत व दण्ड भुगतना पड़ता है। कहा जाता है यहां के राजा महाकाल स्वयं है।

इसको लेकर बहुत सारे उदाहरण भी प्रसिद्ध है, एक बार की बात है देश के चौथे प्रधानमंत्री यहां पर एक रात गुजारी थी तो अगले दिन ही उनकी सरकार गिर गई थीं।

4. महाकालेश्वर एक बहुत ही विशाल परिसर मे मौजूद है। वहा पर बहुत सारे देवी-देवताओं के छोटे बड़े बहुत सारे मंदिर है। मंदिर मे प्रवेश करने के लिए आपको मुख्य द्वार से गर्भगृह तक की दुरी तय करना पड़ता है। इस रास्ते मे कई सारे पक्के रास्ते को तय करना पड़ता है। गर्भ गृह में प्रवेश करने के लिए पक्की सीढ़िया बनी हुई है।

5. मंदिर में एक प्राचीन कुंड स्थित है, वर्तमान में जहां महाकालेश्वर ज्योतिलिंग विद्यमान है। इसमें स्नान करने से आप पापमुक्त होकर अपने जीवन में होने वाली कठिनाईयों से मुक्ति पा सकते हैं। अध्यात्मिक मान्यताओं व विद्वानों के मतानुसार इस पूरी पृथ्वी का केन्द्र बिंदु व पृथ्वी की नाभि यहीं है और सारी सृष्टि का संचालन महाकाल यहीं से करते हैं।

6. यह तीन भागों में बटा हुआ है। नीचे के भाग में हम महाकालेश्वर, बीच में ओमकारेश्वर और ऊपर के भाग में श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर को देखते है। गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल शिवलिंग दक्षिण दिशा में है इसीलिए इसको दक्षिणमुखी शिवलिंग कहा जाता है, ज्योतिष में जिसका विशेष महत्व होता है।

7. गर्भगृह में आप माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की मोहक प्रतिमाओं के दर्शन कर सकते हैं। गर्भ गृह में नदी दीप स्थापित है जो की सदैव प्रज्वलित होता रहता है।

8. महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य आकर्षण की बात करें तो यहां भगवान महाकाल की भस्म आरती, नागचंद्रेश्वर मंदिर, भगवान महाकाल की शाही सवारी प्रसिद्ध है। महाकाल मंदिर में भस्म आरती के लिए पहले से ही बुकिंग करवाना अनिवार्य होता है। उज्जैनी नगरी में हरसिद्धी, कालभैरव, विक्रांतभैवर के मंदिर स्थापित है।

9. हर 12 वर्ष के बाद पढ़ने वाला कुंभ मेला यहां का सबसे बड़ा मेला है जिसमें देश विदेश से कई साधु संत आते हैं और बहुत ही ज्यादा तादात में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है।

10. महाकालेश्वर उज्जैन के प्राचीन नागेश्वर मंदिर को साल में एक बार ही दर्शन के लिये केवल नागपंचमी के उपलक्ष्य पर श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। इसी के साथ-साथ श्रावण मास में भगवान महाकाल की शाही भव्य सवारी भी निकाली जाती है।

11. हर सोमवती अमावस पर उज्जैन में श्रद्धालु पुण्य सलिला शीप्रा स्नान के लिए पधारते हैं, फागुन पक्ष की पंचमी से लेकर नवरात्रि महोत्सव तक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के विशेष दर्शन, पूजन व रुद्राभिषेक किया जाता है।

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