पद्मनाभ स्वामी मंदिर /Padmanabh swami temple
पद्मनाभ स्वामी मंदिर केरल की राजधानी तिरूवनंतपुरम् मे स्थित वैष्णव पंथ को समर्पित मंदिर है। जिसमे श्रीहरि विष्णु की शालिग्राम से निर्मित अत्यंत मोहक प्रतिमा है। इस मुर्ति के नाभि से निकलने वाले कमल पुष्प की वजह से संभवतः इसका नाम पद्मऩाभ पडा होगा।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर का इतिहास
ये वैष्णव पंथ के 108 प्रमुख मंदिरो मे से एक है.. इस मंदिर का वृतान्त संगम काल के साहित्य मे भी मिलता है।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर का वास्तुशिल्प
यह मंदिर दसवी सदी का है और अभी जो स्वरूप है मंदिर का, वो 18वी सदी का है.. इसमे स्थानीय राजाओ ने समय समय पर जीर्णोद्धार करवाया है। यह द्रविणीयन शैैली का शानदार नमूना हैै. 21या 22 मार्च व 23 सितंबर को यह मंदिर प्राचीन वास्तुशिल्प का बोजोड नमुना पेश करता है।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है.. संगम काल के साहित्य मे इस मंदिर का वृतान्त मिलता है. ये मंदिर 10वी सदी से भी प्राचीन है. जिसके ऊपर स्थानीय शासको का संरक्षण रहा होगा. मंदिर प्रबंधन के अधिकार को शिवायत अधिकार बोला जाता है शिवायत अधिकार त्रावणकोर के राजवंश के पास पिछले 200 सालो से है यह व्यवस्था 1750 से चली आ रही है जब त्रावणकोर के राजा मार्तण्ड वर्मा ने मंदिर का नियंत्रण इसका प्रबंधन करने वाले 8 परिवारो से सीधे अपने हाथो मे ले लिया था और खुद को "पद्मनाभदास" घोषित कर दिया तथा भगवान पद्मनाभ के नाम पर त्रावणकोर का शासन चलाने लगे.
अंग्रेजी शासन के समय मे त्रावणकोर राज्य कभी भी सीधे अंग्रेजो के नियंत्रण मे नही आया. जिस वजह से अंग्रेजो के लालच से इस मंदिर का खजाना सुरक्षित रहा.. इसे हम त्रावणकोर राजवंश की दूरदर्शिता व नीतिकुशलता ही कहेगे की मुगलो के लालच व अंग्रेजो की निगाह से ये मंदिर बचा रहा..
इस मंदिर का शिवायत अधिकार व राजवंश का उत्तराधिकार नियम थोडा अलग है.. यहॉ यह अधिकार पुत्र को न मिलकर राजा की बहन के पुत्र को मिलता है.. शायद ऐसी मिसाल के कारण ही दक्षिण भारत मे महिला अनुपात इतना बेहतर है.
पद्मनाभ स्वामी मंदिर व त्रावणकोर राजवंश
वर्ष 1947 मे जब देश आजाद हुआ तब त्रावणकोर राजवंश ने इस शर्त के साथ भारत मे विल़य किया की भारत सरकार पद्मनाभ मंदिर का प्रबंधन राजपरिवार के ही पास रहने देगी जिसके लिये travancore kochi religious institution 1951 बना जिसके प्रमुख राजा श्रीचित्र थिरूनल बलराम वर्मा थे।
जब 1991 मे महाराज की मृत्यु हो गयी तब मंदिर के प्रमुख उनके भाई उत्रदम थिरमल मार्तण्ड वर्मा बने.. जो कि संवैधानिक तौर पर त्रावणकोर राजवंश के उत्तराधिकारी नही हो सकते थे.. वही से मंदिर प्रबंधन का विवाद शुरू हो गया.. राजा मार्तण्ड वर्मा ने कई सार्वजनिक स्थलो पर मंदिर को लेकर ये बयान दिया की मंदिर तथा उसके धन पर त्रावणकोर राजवंश का अधिकार है.. सरकार का नही.. जो भगवान के भक्तो को नागवार गुजरा.. जिसके कारण कई भक्त मंदिर प्रबंधन के मुद्दे पर हाई कोर्ट चले गये..
वर्ष 2011 मे केरल उच्च न्यायालय ने इस प्राचीन मंदिर का प्रबंधन अधिकार राज्य सरकार व प्रशासन को सौप दिया. अदालत ने साफ कहॉ कि त्रावणकोर राजवंश का मंदिर या मंदिर की सम्पत्ति पर कोई अधिकार नही है.. हालाकि राजवंश ने कभी भी मंदिर को अपनी निजी संपदा नही माना.. वो सदैव इसका प्रबंधन भक्त के रूप मे करते रहे है..
जिसके खिलाफ राजपरिवार ने सुप्रीम कोर्ट मे अपील की जिसका फैसला 19 जुलाई 2020 को आया है.. जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर प्रबंधन मे राज परिवार के अधिकार को बरकरार रखा है किन्तु मंदिर प्रबंधन मे सरकार की प्रमुख भुमिका भी निश्चित कर दी है.
पद्मनाभ स्वामी मंदिर का सातवां द्वार
अब सवाल ये उठता है कि इस मंदिर प्रबंधन पर इतना विवाद क्यो है.. तो इसकी वजह है इस मंदिर के गर्भ गृह मे मिली अटुट धन संपादा जो विभिन्न समयो पर पद्मनाभ स्वामी को उनके भक्तो द्वारा चढायी गयी है.. यहॉ रोमन साम्राज्य के सिक्के, मुगलो के सिक्के, सोने चॉदी के बर्तन, मुर्तिया, आभुषण रत्न आदि मिला है. यहॉ पाच तहखाने है.. जिनमे से सिर्फ एक तहखाने मे मिले सोने की कीमत 2011 मे 1 लाख करोड थी.. इन सामानो के सॉस्कृतिक महत्व को जोडा जाये तो ये कीमत और बढ जाती है.. इतनी बडी सम्पदा के स्वामी पद्मनाभ पहले तहखाने के खुलते ही विश्व के सबसे अमीर भगवान बनगये थे.. जबकि एक तहखाना जिसे vault B बोला जाता है.. मंदिर प्रबंधन ने खुलने नही दिया.. बाकि तहखानो मे मिलाकर मंदिर के पास कितना धन है.. ये किसी को पक्के तौर पर नही पता है.. पर यह सत्य है कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर विश्व का सबसे अमीर धार्मिक स्थल है.. पद्मनाभ स्वामी मंदिर की यही विशेषता इसे अन्य मंदिरो से खास बनाती है।
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