छाबला गैग रेप - सुप्रीम कोर्ट की घटती विश्वसनीयता ( Chhabla gang rape )
वर्ष 2012 जब देश निर्भया गैग रेप की विभत्सता से दहल गया था, उस एक बेटी के लिये पूरा देश सङको पर आ गया था, जगह जगह प्रदर्शन हो रहे थे, हर मुद्द् मे एक दूसरे का विरोध करने वाली राजनीतिक पार्टिया इस एक मुद्दे पर एक साथ खङी थी, और वो मुद्दा था महिला सुरक्षा ।
तात्कालिक सरकार को हिला देने वाले इस मुद्दे ने, देश मे महिलाओ के लिये वैधिक सहायता को एसान बनाने मे महत्वपूर्ण भुमिका निभायी थी, इस मुद्दे के बाद पुरे देश मे निर्भया हेल्प लाईन की सहायता हुई। जिसकी सक्रिय भुमिका ने आने वाले दिनो मे कई लङकियो को सुरक्षा प्रदान की।
छाबङा केस
9 फरवरी 2012 की रात को उत्तराखण्ड की ये 19 साल की लङकी अपने आफिस से लौट रही थी, आफिस से लौटते समय 3 कार सवार लोगो ने इसका अपहरण कर लिया। एक अत्यंत वीभत्स रेप केस दर्ज किया गया था, यह केस लङकी के साथ बरबरता दिखाने मे निर्भया जितना ही वीभत्स था।
दिल्ली की सेशन कोर्ट और हाई कोर्ट ने दोषियो को फासी की सजा सुनाई थी, पर हाई कोर्ट ने इस फैसले रद्द करते हुए दोषियो को बरी कर दिया, सूप्रीम कोर्ट का ये फैसला समझ कै परे है कि आखिर किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने ये कदम उठाया । सुप्रीम कोर्ट ने इस केस परिस्थितिजन्य साक्ष्य को नाकाफी मानते हुए आरोपियो को संदेह का लाभ दिया है। अब सवाल ये उठता है कि अगर तीनो आरोपी निर्दोष है तो अनामिका (कोर्ट द्वारा दिया गया नाम) के साथ हैवानियत की किसने, उसके शव को सिगरेट से दागा गया था, जगह जगह नोचा गया था, चेहरे पर तेजाब डालकर उसकी आखिर को जला दिया गया था, इतनी वीभत्सता दिखाई किसने ?
दिल्ली की सेशन कोर्ट और हाई कोर्ट ने दोषियो को फासी की सजा सुनाई थी, पर हाई कोर्ट ने इस फैसले रद्द करते हुए दोषियो को बरी कर दिया, सूप्रीम कोर्ट का ये फैसला समझ कै परे है कि आखिर किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने ये कदम उठाया । सुप्रीम कोर्ट ने इस केस परिस्थितिजन्य साक्ष्य को नाकाफी मानते हुए आरोपियो को संदेह का लाभ दिया है। अब सवाल ये उठता है कि अगर तीनो आरोपी निर्दोष है तो अनामिका (कोर्ट द्वारा दिया गया नाम) के साथ हैवानियत की किसने, उसके शव को सिगरेट से दागा गया था, जगह जगह नोचा गया था, चेहरे पर तेजाब डालकर उसकी आखिर को जला दिया गया था, इतनी वीभत्सता दिखाई किसने ?
काश भारतीय न्यायपालिका से सवाल पूछने का आधिकार हम जैसे आम नागरिको को भी होता कि आखिर क्यो निर्भया के दोषियो को फासी होने मे 10 साल लग गये, क्यो छावला केस के दोषी बरी हो गये, भारतीय न्यायपालिका महिलाओ के साथ हुए अपराध को लेकर इतनी तटस्थ क्यो है जबकि सब जानते है कि महिला अपराध मे अपराधी से बङी सजा उस महिला को मिलती है, जिसके ऊपर अत्याचार हुआ है, रामायण की सीता हो, या महाभारत की द्रौपदी, नर्स अरूना शानबाग हो, या जापान की जाको फुरूता, समाज भारतीय हो या पश्चिमी, महिलाओ के प्रति पुरूषोत्तम का नजरिया लगभग एक समान ही रहा है, शोषण करने वाला, अब वक्त है, इस सोच को बदलने का, महिला अपराध करने वालो को कोई से कोई सजा देकर समाज मे उदाहरण प्रस्तुत करने का।
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