आर्थिक आधार पर आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट का संरक्षण (SC upholds EWS reservation)
आज सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 3-2 से अपना फैसला आर्थिक आरक्षण के पक्ष मे सुनाया है। पुरे देश से लगायी गयी 30 से भी अधिक याचिकाओ मे आर्थिक आरक्षण जिसे 70 साल से भी अधिक समय से आरक्षण की रेवङी काट रहे दलित सवर्ण आरक्षण बोलते है इसका विरोध कर रहे थे, आखिर क्या है ये सवर्ण आरक्षण आइये जानते है -
आर्थिक आधार पर आरक्षण की माग की शुरूआत
देश के सबसे ज्यादा चर्चित सिविल सेवा परीक्षा के परिणाम वर्ष 2015 मे घोषित हुए, क्योकि उस वर्ष civil service examination को टाप किया तथाकथित दलित छात्रा टीना डाबी ने। देश भर मे दिये जाने वाले आरक्षण के पीछे मूल भावना थी, दलित का हुआ तथाकथित शोषण। पर इन मोहतरमा के चयन ने पूरे देश मे शोषण की परिभाषा को ही विवादो मे खङा कर दिया ।टीना डाबी जो की IES पिता तथा IES माता की सन्तान थी, जो कि हर तरह से सम्पन्न परिवार से थी, आर्थिक तौर पर भी तथा सामाजिक तौर पर भी। उनके द्वारा अनुसूचित जनजाति को दिये गये आरक्षण का लाभ उठाना, जाति आधारित आरक्षण की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह उठाने लगा ।
विवाद की शुरूआत
टीना डाबी जो कि एक सम्पन्न परिवार से आती है, उन्हों अपनी चयन प्रकिया के पहले ही चरण मे आरक्षण का लाभ उठा लिया था, और यह तो सर्ववदित है कि pre परीक्षा से बाहर होने वाला mains देने का ही पात्र नही रह जाता, तो उस परीक्षा मे बैठने या top करने का प्रश्न ही नही उठेगा। टीना डाबी के चयन मे सबसे बङा विवाद है उनका सम्भ्रात परिवार से होते हुए आरक्षण की सहायता से इस परीक्षा मे चयनित होना, तात्कालिक समय मे इस चयन को लेकर अच्छा खासा विवाद हौआ था, दलित शुभ चिन्तक उस अत्याचार का हवाला दे रहे थे, जिसके होने का कोई प्रमाण नही है, तो आरक्षण विरोधी आजादी के 70 वर्ष बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था पर सबसे बङा बोझ आरक्षण की प्रासंगिकता पर ही सवाल उठा रहे थे,
आरक्षण का औचित्य
आजादी के 70 वर्ष बाद आरक्षण जो कि "वंचित को संरक्षण" की सोच के साथ शुरू हुआ था, अब सत्ता पाने का हथियार बन कर रह गया है, पिछले कुछ वर्षो मे जाट, मराठा , पिछल वर्ग आदि जातियो द्वारा किये गये आरक्षण की माग को लेकर आन्दोलन ने सबको सोचने पर विवश कर दिया है आखिर क्या वजह है इतने सालो के बाद भी, कोई भी आरक्षण सूची से निकल नही पायी, क्यो दिन ब दिन आरक्षण की माग करने वालो की संख्या बढती ही जा रही है।
आर्थिक आरक्षण की शुरूआत
इन सभी विवादो तथा सवर्णो की बढती नाराजगी तथा आरक्षण विरोधी आन्दोलन को मिलती दिशा को देखते हुए तात्कालिक केन्द्र सरकार ने 12 जनवरी 2019 को 103 वे संशोधन द्वारा गरीब तबके के स्वर्ण को 10% आरक्षण दिया, ये देश का पहला ऐसा आरक्षण है जो किसी कपोल कल्पित उत्पीडन नही बल्कि उस आर्थिक अक्षमता के आधार पर दिया गया, जिसके कारण गरीब सवर्ण छात्रो की प्रतिभा दम तोङ रही थी।
आर्थिक आरक्षण के विरोध का विरोध
यह आरक्षण जिस दिन से अस्तित्व मे आया उसी दिन से दशको से आरक्षण की रेवङी काट रहे दलित के निशाने पर आ गया, सम्भ्रात दलित लगातार माग करने लगे कि आरक्षण जातिगत होना चाहिये न की आर्थिक । कुछ क्रांतिकारी छात्र तो अपनी औचित्यहीन माग को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चले गये किन्तु माननीय उच्च न्यायालय ने अपनी गरिमा को कायम रखते हुए सवर्णो के आरक्षण को संवैधानिक ढांचे को मजबुत करने वाला बताया तथा इसे बरकरार रखा, हमारे विचार मे तो आरक्षण किसी भी तरह से जायज नही है, अगर मिलना चाहिये तो सिर्फ संरक्षण वो भी आर्थिक आधार, इस पर आपके क्या विचार है, कमेन्ट करे।
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