पूजा खेडकर की कहानी मुझसे अलग है’ — मैंने UPSC पास किया, लेकिन नौकरी नहीं मिली
आठ साल पुरानी कानूनी लड़ाई ने ऐसे उम्मीदवारों को थका दिया है. कई लोगों को इन सालों में रिश्तेदारों और समाज को अपने सिलेक्शन नहीं होने के बारे में समझाने में मुश्किल हुई है.
नई दिल्ली: अगर सिलेक्शन रूल्स की “सही परिभाषा” के अनुसार, चीज़ें काम करतीं, तो 36-वर्षीय केतन आज सिविल सेवक होते, लेकिन इसके बजाय, वह यूपीएससी के एस्पिरेंट्स को ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं, क्योंकि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा उनके सिलेक्शन पर विचार करते समय उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की नॉन-क्रीमी लेयर लिस्ट से हटा दिया गया. उन्होंने 2015 में ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर कैटेगरी के तहत यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास की और 860वीं रैंक हासिल की, लेकिन जब सर्विस एलोकेशन लिस्ट आई, तो उनका नाम गायब था.
यह आठ साल पहले की बात है. तब से, वे और 55 अन्य लोग एक केस लड़ रहे हैं जो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है.
पूजा खेडकर मामले ने डीओपीटी द्वारा सिलेक्शन रूल्स की गलत परिभाषा का आरोप लगाने वाले 56 लोगों के समूह को नया हथियार दे दिया है. वे डीओपीटी द्वारा सर्विस एलोकेशन या सही सर्विस की मांग को लेकर अदालतों में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं और आठ साल पुरानी कानूनी लड़ाई ने उन्हें थका दिया है, उनकी हताशा व्हाट्सएप ग्रुप में झलक रही है जो उन्हें लड़ाई के लिए एकजुट करता है. कई लोगों को इन सभी वर्षों में अपने रिश्तेदारों और समाज को अपने सिलेक्शन नहीं होने के पीछे के कारण को समझाने में मुश्किलें आई हैं. इसके अलावा कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए वित्तीय संघर्ष भी है. दिल्ली हाई कोर्ट और मद्रास हाई कोर्ट ने उम्मीदवारों के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन डीओपीटी मामले को शीर्ष अदालत में ले गया.
केतन ने कहा, “मैंने अपनी युवावस्था के सबसे प्रोडक्टिव साल इस परीक्षा में दिए और मैं सफल भी रहा. मैंने इसे पास किया, यह डीओपीटी था जो एक नियम की परिभाषा देने में विफल रहा. मैं हर दिन सिलेक्शन नहीं होने का सदमा अपने साथ लेकर चलता हूं.” उन्होंने पूजा खेडकर के सिलेक्शन को लेकर भी डीओपीटी पर भी उंगली उठाई. खेडकर पूर्व ट्रेनी आईएएस जिस पर अपने ओबीसी सर्टिफिकेट में जालसाजी करने का आरोप है.
उनका आरोप है कि 2013 से 2017 के बीच, कम से कम 56 ओबीसी उम्मीदवार जिनके माता-पिता पीएसयू कर्मचारी हैं, उन्हें या तो सेवाओं में शामिल होने से बाहर रखा गया या उन्हें ऐसे कैडर दिए गए जो उनकी पसंद के अनुसार नहीं थे. 56 लोगों के इस ग्रुप में से कई का आरोप है कि उनकी रैंक के आधार पर और पिछले वर्षों के रुझान का पालन करते हुए, उन्हें बस एक सेवा या “उच्च सेवा” आवंटित की जानी चाहिए थी, लेकिन डीओपीटी के अनुसार, वे ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर रिजर्वेशन के लिए पात्र नहीं थे, जबकि इन 56 में से कुछ आईएएस, आईपीएस और आईआरएस में सेवारत हैं, कई ने केतन की तरह वैकल्पिक करियर चुना है.
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